एक अधिकारी की कहानी भाग- तीन,,, चोर चोर मौसेरे की जगह विभाग में अब चोर चोर चचरे भाई वाली कहावत चल रही है,,, मिल कर लूट रहें है दोनों अब नेताजी की नीयत पर उठ रहे सवाल,,, कहीं ये ना हो कि बहुत देर से दर पे आंखे लगी थी बहुत देर कर दी हुजूर आते आते, कार्यवाही का इन्तेजार है,,,

सक्ती। मेरे प्रिय पाठकों आपने एक अधिकारी की कहानी के पूर्वरत दो भाग पढ़े हैं जिसका बहुत ज्यादा प्यार मिला जिसके लिए मैं और मेरी टीम आप सभी पाठकों को दिल से धन्यवाद देते है।
अब हम इसी कड़ी में आपको आगे लिए चलते हैं। वर्तमान में उक्त विभाग में एक मजेदार कांड चल रहा है जो भ्रष्टाचार का एक नया नमूना भी पेश कर रहा है। एक भाई अधिकारी है तो दूसरा चचेरा भाई विभाग में ही कॉन्ट्रैक्ट कर्मचारी है। अधिकारी की दबंगई तो इतनी है कि उसने नियमों को ताक में रखते हुए अपने रिश्ते के भाई को अपने ही विभाग में नौकरी दे डाली, अगर वो नौकरी सरकारी नियमों के रूप में मिलती तो कोई बात नहीं लेकिन जो खुद किसी के एहसास से उस कुर्सी पर बैठा हो और वो अपने रिश्तेदार को भी वहां अपने पद का दुरुपयोग करते नौकरी पर लगाए तो उसे हर कोई गलत ही बोलेगा। ऐसे है हमारे साहब जो नियमों को जूते के नीचे रखते हैं और जनप्रतिनिधियों के भावनाओं को उसी जूते से मारते हुए दिख रहें है। एक समय था जब भ्रष्टाचार का आरोप उक्त विभाग के जनप्रतिनिधियों पर लगता है और अधिकारी नियमों के अनुसार चलता था लेकिन उक्त विभाग का अधिकारी अपने ईगो के अनुरूप जनप्रतिनिधियों को जूते की नोंक में रखकर काम कर रहा है। पिछले भाग की बातें पूरी तरह तो नेताजी तक पहुंच गई और जैसा नेताजी का स्वभाव है उसके अनुरूप ईमानदारी से रेवडियां वापस हो गई लेकिन आज भी लग रहा है कि नेताजी अपने ऊपर हुए एहसान तले दबे नजर आ रहें हैं। वैसे नेताजी को अपने राजनीतिक ईमानदारी की ज्यादा चिंता रहती है तभी जब भी नेताजी को पता चलता है कि इससे उन्हें और उनकी ईमानदारी तथा कर्मठता पर सवाल उठ रहा है तो वो तत्काल कार्यवाही करते ही हैं। लेकिन इस बार चूंकि एहसान बड़ा था तो एक मौका और उक्त भ्रष्ट अधिकारी को दी गई है। लेकिन जिसकी आदत में ही भ्रष्टाचार शुमार हो जो बेईमानी को ही अपना सबकुछ मानने लगा हो उसे किसी और के व्यक्तित्व से क्या सरोकार है। अब हम आगे बढ़ते है और बताते हैं कि किस तरह चोर चोर चचेरे भाई अब उक्त विभाग में भ्रष्टाचार को नए आयाम दें रहे हैं। एक भाई तो बड़े पद पर है तो वहीं दूसरे भाई को अपने ही विभाग में कॉन्ट्रैक्ट कर्मचारी रख एक बड़े जिम्मेदारी की कमान सौंप देता है और मिलकर अब डीजल, पेट्रोल का खेल जोरों पर खेल रहा है। चूंकि दूसरा रिश्ते का भाई है तो पदाधिकारी अधिकारी साहब को अपने बेईमानी का पूरा अवसर मिल रहा है। उक्त विभाग में राज्य के पैसों के साथ साथ केंद्र की महत्वकांक्षी योजनाओं का भी भरपूर फण्ड मिल रहा है और दोनों भाई मिलकर उक्त राशियों का पूरा दोहन कर रहे है।

ऐसा नहीं है कि लोगों को इस बात की जानकारी नहीं है लेकिन अधिकारी साहब तो जैसे सिर्फ बेईमानी करने ही दुनिया में आये हैं, बस क्या है अपने तीन करोड़ के टारगेट को बढ़ाते हुए अब साहब ने पांच करोड़ का टारगेट बना लिया, लेख के माध्यम से सभी लोगों को उक्त अधिकारी की कारगुजारियों का पता तो चल रहा है लेकिन एहसान से दबे नेताजी मौकों पर मौके देते जा रहें हैं। नेताजी जी को एक सर्वे जरूर कराना चाहिए कि किस तरह उक्त अधिकारी द्वारा उनकी छवि को धूमिल नहीं पूरा बर्बाद करने में आमादा नजर आ रहा है। नेताजी की काबिलियत तो ये है कि वो अपने दुश्मनों को भी परेसान नहीं करते हैं और ना ही वो किसी को जाने या अनजाने में तकलीफ देते हैं। लेकिन नेताजी की भलमनसाहत का फायदा उक्त अधिकारी बहुत ज्यादा उठा रहा है, और उठाये भी क्यों नहीं जब अधिकारी के मन मे सिर्फ पैसा ही हो, जहां भी मौका मिल रहा है अधिकारी अपने भ्रष्टाचार का प्रकोप उस जगह पर डाल रहा है। बातें तो सूत्र बताते हैं लेकिन यहां की बातें अधिकारी के भ्रष्टाचार में लिप्त कुछ ठेकेदार जरूर बताते हैं कहते हैं कि अगर हम उनका भ्रष्टाचार में साथ नहीं देंगे तो जो थोड़ा बहुत हमारा घर चल रहा है वो भी नहीं चलेगा और हो सकता है कि 151 की धारा फिर लग जाए। विडंबना यही है कि जनप्रतिनिधियों द्वारा भी उक्त अधिकारी को अपने नेताजी के कारण सहना पड़ रहा है नहीं तो इस अधिकारी की क्या बखत जो जनप्रतिनिधियों को भी दबा सके। मजबूर जनप्रतिनिधि अपने नेता को छोड़ नहीं सकते भले ही कितनी आपदा, विपत्ति आ जाए, यही बात उक्त अधिकारी को बहुत अच्छे से पता है लेकिन पूर्व के भागों को लेकर जनप्रतिनिधियों में भी थोड़ी हिम्मत आई है और अब नेताजी के समक्ष उक्त अधिकारी की शिकायतों का दौर चालू हो गया है। एक कहावत है कि किसी को इतना सतावो कि वक्त आने पर तुम खुद सह सको, लेकिन साहब को वक्त की चिंता नहीं है अगर पांच करोड़ का टारगेट पूरा हो गया तो फिर नौकरी लूप लाइन से भी चल सकती है, लेकिन टारगेट पूरा होने से पहले लूप लाइन में चले गए तो आगे की जिंदगी यानी नोटों को उड़ाने की आदत में काफी दिक्कत होगी। क्योंकि रुपया चलाय मान है लेकिन अथाह पैसा होगा तो समय कुछ दिन का बुरा होता है ये दस्तूर अधिकारी महोदय को पता है। अब देखना है कि नेताजी अपने एहसानों जो लगभग भरपाई हो गई है कि साथ चलते हैं या अपने करीबियों, अपनी जनता के लिए चलते हैं। जो भी आप सभी पाठकों को लगातार अधिकारी के यहां रहते नए नए कारनामों का पता चलता रहेगा और आपको मजा मिलता रहेगा। कोरोना काल मे लोग कोरोना के समाचारों से काफी पक गए है अब उनके मनोरंजन ही कहें के समाचार लगातार आगे भी मिलते रहेंगे, भाग थमेगा तभी जब उक्त अधिकारी के काले मंसूबों पर पानी का सैलाब बरसेगा नहीं तो हम उजागर करते रहेंगे और आप जरूर हमारे साथ बने रहें। इन लेखों का उद्देश्य बहुत है जिसमें स्थानीय स्तर पर भ्रष्टाचार पर अंकुश लगे और कोई दूसरा अधिकारी इतना अति ना करे जिससे जनता और नेता के विश्वास पर कुठाराघात ना हो सके। वैसे आदत में भ्रष्टाचार शुमार करने वाले अधिकारी पर जल्द ही अपराध को खत्म करने वाले दस्ते का प्रकोप बरसेगा और लोगों के सामने उक्त अधिकारी की बुरी नियतों का पर्दा फाश जरूर होगा। लोग नौकरी के लिए तरश रहें है और अधिकारी अपने रिश्तेदार को रेवड़ी नहीं 56 भोग की थाली परोस चुका है। मतलब साफ है जब तक उक्त अधिकारी विभाग को बर्बाद ना कर दे तब तक उसे चैन नहीं होगी क्योंकि टारगेट जरूरी बाकी सब अधूरी वाली बात चल रही है। वैसे नेताजी को अब जल्द ही अपनी साख बचने कदम बढ़ाना होगा।

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